Wednesday 17 April 2013


बचपन










हाथ बढ़ा कर 
करता हूँ  
कोशिश,
जब 
चाँद को 
पकड़ने की,
हँसता है
बचपन,
मेरी नादानी पे.

खो जाता हूँ जब
भूल-भुलैया में,
तारों की,
लौटा देता है
कोई,
फिर से, 
राहों में
बचपन की.

जी करता है 
दौड़ने का,
अनायास फिर से,
देखकर  
एक बच्चे को,
भागते 
यूँ ही,
अनायास.












(v.k.srivastava)

No comments: