भोर
झिलमिल सितारों
से भरी,
आकाशगंगा की परी,
लहरा के आँचल चल पड़ी,
नाज़ुक, लचकती बल्लरी,
मखमल सी कोमल चाँदनी,
कलकल, नदी की रागिनी,
बंसी की मादक तान,
जैसे भैरवी, शिवरंजिनी,
पायल में छमछम सी खनक,
आंखों में जुगनू की चमक,
शीतल पवन यूँ मंद-मंद,
सासों में फूलों की महक,
'प्रियतम' बड़ा बेकल अधीर,
उस छोर झांके नभ को चीर,
सदियों से लम्बी हर घड़ी,
'क्यूँ चल रही धीरे, अरी'?
बेला मिलन की आसपास,
चहु ओर लाली की उजास,
आलिंगनबद्ध 'निशा-भोर'
धरती को नवजीवन की आस।
आकाशगंगा की परी,
लहरा के आँचल चल पड़ी,
नाज़ुक, लचकती बल्लरी,
मखमल सी कोमल चाँदनी,
कलकल, नदी की रागिनी,
बंसी की मादक तान,
जैसे भैरवी, शिवरंजिनी,
पायल में छमछम सी खनक,
आंखों में जुगनू की चमक,
शीतल पवन यूँ मंद-मंद,
सासों में फूलों की महक,
'प्रियतम' बड़ा बेकल अधीर,
उस छोर झांके नभ को चीर,
सदियों से लम्बी हर घड़ी,
'क्यूँ चल रही धीरे, अरी'?
बेला मिलन की आसपास,
चहु ओर लाली की उजास,
आलिंगनबद्ध 'निशा-भोर'
धरती को नवजीवन की आस।
(v.k.srivastava)
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